वंशानुक्रम का स्वरूप तथा अवधारणा
वंशानुक्रम का मूलाधार कोष (Cell) हैं जिस प्रकार एक-एक ईंट को चुनकर इमारत बनती है ठीक उसी प्रकार से कई कोषों के द्वारा मानव शरीर का निर्माण होता है कोष के केन्द्रक में गुण सूत्र पाए जाते हैं इन्हीं में अनुवंशिकता के मूल संवाहक जीन्स (Genes) पाए जाते हैं, जो सन्ततियों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संक्रमित होते हैं। इसी प्रक्रिया को वंशानुक्रम कहा जाता है।
मान्टेग्यु और शील फेन्ड के अनुसार प्रत्येक गुण सूत्र में 3,000 जीन्स पाए जाते हैं। वंशानुक्रम की अवधारणा को समझने के लिए विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं को समझना आवश्यक है।
जेम्स ड्रेवर "शारीरिक तथा मानसिक विशेषताओं का माता-पिता से सन्तानों में हस्तान्तरण होना वंशानुक्रम है।
रूथ बेनीडिक्ट "वंशानुक्रम माता-पिता से सन्तानों को प्राप्त होने वाले गुण पी. जिसबर्ट "प्रकृति में पीढ़ी का प्रत्येक कार्य कुछ जैविकीय अथवा हैं।' मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को माता-पिता द्वारा उनकी सन्तानों में हस्तान्तरित करना है।"
एच.ए. पेटरसन "व्यक्ति अपने माता-पिता के माध्यम से पूर्वजों की जो भी विशेषताएँ प्राप्त करता है उसे वंशानुक्रम कहते हैं।"
वुडवर्थ “वंशानुक्रम में सभी बातें सम्मिलित हैं जो कि व्यक्ति में जबकि उसके जीवन का आरम्भ हुआ जन्म के समय नहीं, वरन् गर्भाधान के समय जन्म से लगभग नौ माह पूर्व उपस्थित थीं।'
जीवशास्त्रियों के अनुसार "निषिक्त अण्ड में सम्भावित विद्यमान विशिष्ट गुणों का योग ही आनुवंशिकता है।"
वंशानुक्रम का प्रभाव
वंशानुक्रम के कुछ महत्त्वपूर्ण प्रभावों का विवरण इस प्रकार हैं।
शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव
बालक के रंग-रूप, आकार, शारीरिक गठन, ऊँचाई, इत्यादि के निर्धारण में उसके आनुवंशिक गुणों का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। बालक के आनुवंशिक गुण उसके वृद्धि एवं विकास को भी प्रभावित करते हैं। यदि बालक के माता-पिता गोरे हैं तो उनका बच्चा गोरा ही होगा, किन्तु यदि माता-पिता काले हैं तो उनके बच्चे काले ही होंगे। इसी प्रकार माता-पिता के अन्य गुण भी बच्चे में आनुवंशिक रूप से चले जाते हैं। इसके कारण कोई बच्चा अति प्रतिभाशाली एवं सुन्दर हो सकता है एवं कोई अन्य बच्चा शारीरिक एवं मानसिक रूप से कमजोर ।
बुद्धि पर प्रभाव
बुद्धि को अधिगम (सीखने) की योग्यता, समायोजन योग्यता, निर्णय लेने की क्षमता, इत्यादि के रूप में परिभाषित किया जाता है। जिस बालक के सीखने की गति अधिक होती है, उसका मानसिक विकास भी तीव्र गति से होगा। बालक अपने परिवार, समाज एवं विद्यालय में अपने आपको किस तरह समायोजित करता है यह उसकी बुद्धि पर निर्भर करता है।
गोडार्ड का मत है कि मन्द बुद्धि माता-पिता की सन्तान मन्द बुद्धि और तीव्र बुद्धि माता-पिता की सन्तान तीव्र बुद्धि वाली होती है। मानसिक क्षमता के अनुकूल ही बालक में संवेगात्मक क्षमता का विकास होता है।
चरित्र पर प्रभाव
डगडेल नामक मनोवैज्ञानिक ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह बताया कि माता-पिता के चरित्र का प्रभाव भी उसके बच्चे पर पड़ता है। व्यक्ति के चरित्र में उसके वंशानुगत कारकों का प्रभाव स्पष्ट तौर पर देखा जाता है, इसलिए बच्चे पर उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है। डगडेल ने 1877 ई. में ज्यूक नामक व्यक्ति के वंशजों का अध्ययन करके यह बात सिद्ध की थी।
वातावरण का अर्थ
वातावरण अथवा परि + आवरण- 'परि' का अर्थ है चारों ओर 'आवरण' का अर्थ है-ढकना। इस प्रकार पर्यावरण का शाब्दिक तात्पर्य है चारों ओर से घेरने वाला प्राणी या मनुष्य जल, वायु, वनस्पति, पहाड़, पठार, नदी, वस्तु आदि से घिरा हुआ है यही सब मिलकर पर्यावरण का निर्माण करती है। इसे वातावरण या पोषण के नाम से सभी जानते हैं। पर्यावरण को समझने के लिए इसकी परिभाषाओं को समझना आवश्यक है।
एनास्टैसी "पर्यावरण वह हर चीज है जो व्यक्ति के जीवन के अलावा उसे प्रभावित करती है।" जिसबर्ट "जो किसी एक वस्तु को चारों ओर से घेरे हुए हैं तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है वह पर्यावरण होता है।" वुडवर्थ "वातावरण में वे समस्त बाह्य तत्व आ जाते हैं जिन्होंने जीवन प्रारम्भ करने के समय से व्यक्ति को प्रभावित किया है।" "पर्यावरण वे सभी परिस्थितियाँ हैं जो व्यवहार को उद्दीप्त करती है। रच या व्यवहार में परिमार्जन उत्पन्न करती है।" रॉस "पर्यावरण कोई बाहरी व्यक्ति है जो हमें प्रभावित करता है।"
बोरिंग लैगफील्ड एवं वेल्ड "व्यक्ति का वातावरण उन सभी उत्तेजनाओं का योग है जिनको वह जन्म से मृत्यु तक ग्रहण करता है।"
टी.डी. इलियट "चेतन पदार्थ की किसी इकाई के प्रभावकारी उद्दीपन एवं अन्तः क्रिया के क्षेत्र को वातावरण कहते हैं।”
वातावरण सम्बन्धी कारक
वातावरणीय कारक कई प्रकार के होते हैं
भौतिक कारक
इसके अन्तर्गत प्राकृतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियाँ आती हैं। मनुष्य के विकास पर जलवायु का प्रभाव पड़ता है। जहाँ अधिक सर्दी पड़ती है या जहाँ अधिक गर्मी पड़ती है वहाँ मनुष्य का विकास एक जैसा नहीं होता है। ठण्डे प्रदेशों के व्यक्ति सुन्दर, गोरे, सुडौल, स्वस्थ एवं बुद्धिमान होते हैं। धैर्य भी इनमें अधिक होता है। जबकि गर्म प्रदेश के व्यक्ति काले, चिड़चिड़े तथा आक्रामक स्वभाव के होते हैं।
सामाजिक कारक -
सामाजिक व्यवस्था रहन-सहन, परम्पराएँ, धार्मिक कृत्य, रीति-रिवाज, पारस्परिक अन्त:क्रिया और सम्बन्ध आदि बहुत-से तत्त्व हैं जो मनुष्य के शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक तथा बौद्धिक विकास को किसी-न-किसी ढंग से अवश्य प्रभावित करते हैं।
आर्थिक कारक
अर्थ से केवल सुविधाएँ ही नहीं प्राप्त होती बल्कि इससे पौष्टिक चीजें भी खरीदी जा सकती हैं जिससे मनुष्य शरीर विकसित होता है। धनहीन व्यक्ति में असुविधा के अभाव में हीन भावना विकसित हो जाती है जो विकास के मार्ग में बाधक है आर्थिक पर्यावरण मनुष्य को बौद्धिक क्षमता को भी प्रभावित करता है। सामाजिक विकास पर भी इसका प्रभाव पड़ता है
सांस्कृतिक कारक
धर्म और संस्कृति मनुष्य के विकास को अत्यधिक प्रभावित करती है। खाने का ढंग, रहन-सहन का ढंग, पूजा-पाठ का ढंग, समारोह मनाने का ढंग, संस्कार का ढंग आदि हमारी संस्कृति हैं जिन संस्कृतियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण समाहित हैं उनका विकास ठीक ढंग से होता है लेकिन जहाँ अन्धविश्वास और रूढ़िवाद का समावेश है तो संस्कृति से उस समाज का विकास सम्भव नहीं है।"
वातावरण का प्रभाव
वातावरण के कुछ महत्त्वपूर्ण प्रभावों का विवरण इस प्रकार शारीरिक अन्तर का प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक लक्षण वैसे तो वंशानुगत है। होते हैं, किन्तु इस पर वातावरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का कद छोटा होता है जबकि मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का शरीर लम्बा एवं गठीला होता है।
प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव कुछ प्रजातियों की बौद्धिक श्रेष्ठता का कारण वंशानुगत न होकर वातावरणजन्य होता है। वे लोग इसलिए अधिक विकास कर पाते हैं, क्योंकि उनके पास श्रेष्ठ शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक वातावरण उपलब्ध होता है।
व्यक्तित्व पर प्रभाव (व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण का अधिक प्रभाव पड़ता है।
न्यूमैन, फ्रीमैन और होलजिंगर ने इस बात को साबित करने के लिए 20 जोड़े जुड़वाँ बच्चों को अलग-अलग वातावरण में रखकर उनका अध्ययन किया। उन्होंने एक जोड़े के एक बच्चे को गाँव के फार्म पर और दूसरे को नगर में रखा। बड़े होने पर दोनों बच्चों में पर्याप्त अन्तर पाया गया। फार्म का बच्चा अशिष्ट, चिन्ताग्रस्त और बुद्धिमान था। उसके विपरीत, नगर का बच्चा, शिष्ट, चिन्तामुक्त और अधिक बुद्धिमान था।
मानसिक विकास पर प्रभाव गोर्डन नामक मनोवैज्ञानिक का मत है कि उचित सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण न मिलने पर मानसिक विकास की गति धीमी हो जाती है। यह बात नदियों के किनारे रहने वाले बच्चों का अध्ययन करके सिद्ध की गई। इन बच्चों का वातावरण गन्दा और समाज के अच्छे प्रभावों से दूर था। अध्ययन में पाया गया कि गन्दे एवं समाज के अच्छे प्रभावों से दूर रहने के कारण बच्चों के मानसिक विकास पर भी प्रतिकूल असर पड़ा था।
बालक पर बहुमुखी प्रभाव वातावरण, बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि सभी अंगों पर प्रभाव डालता है। इसकी पुष्टि 'एवेरॉन के जंगली बालक' के उदाहरण से की जा सकती है। इस बालक को जन्म के बाद एक भेड़िया उठा ले गया था और उसका पालन-पोषण जंगली पशुओं के बीच में हुआ था। कुछ शिकारियों ने उसे सन् 1799 ई. में पकड़ लिया। उस समय उसकी आयु 11 अथवा 12 वर्ष की थी। उसकी आकृति पशुओं-सी हो गई थी। वे उनके समान ही हाथों-पैरों से चलता था। वह कच्चा मांस खाता था। उसमें मनुष्य के समान बोलने और विचार करने की शक्ति नहीं थी। उसको मनुष्य के समान सभ्य और शिक्षित बनाने के सब प्रयास विफल हुए।
शिक्षा में वंशानुक्रम तथा वातावरण का महत्त्व
"शारीरिक विकास मानसिक विकास, संवेगात्मक विकास, सामाजिक विकास पर तो इन दोनों का प्रभाव पड़ता है, शिक्षा भी इससे प्रभावित होती है क्योंकि सभी विकास से शिक्षा का रचनात्मक सह-सम्बन्ध है। आधुनिक शिक्षा का सबसे बड़ा आधार मनोविज्ञान है, जिसने शिक्षा का स्वरूप बदल दिया। आज शिक्षा बाल केन्द्रित बन गई है।
बालक को समझकर ही उसे दिशा-निर्देश दिया जा सकता है। एक कक्षा में पढ़ने वाले सभी बालकों का शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य एक जैसा नहीं होता है। शारीरिक विकास मानसिक विकास से जुड़ा है और जिसका मानसिक विकास अच्छा होता है उसकी शिक्षा भी अच्छी होती है।
बौद्धिक क्षमता के लिए अधिकतर वंशानुक्रम जिम्मेदार होता है। इसलिए बालक को यदि समझना है तो उसके दोनों कारकों को भी समझना आवश्यक है।
विद्यालयों में बालकों से कई प्रकार की अनुशासनहीनता दिखाई देती है। कुछ चीजों के लिए तो परिवार का परिवेश जिम्मेदार है लेकिन कुछ कारण वंशानुक्रम के भी होते हैं, जैसे चोरी करना, क्रूरता या मारपीट करना, चरित्रहीनता, अपराधी होना इत्यादि वंशानुक्रम से भी आते हैं। इस सन्दर्भ में बहुत से अध्ययन किए गए हैं कुछ अपराधी, चरित्रहीन परिवारों के अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि परिवेश बदलने पर भी बच्चों में इस प्रकार की बुराइयाँ दिखाई देती हैं।
इसलिए विद्यालय में यदि अनुशासनहीनता के कारण को समझना है तथा उसका उपचार करना है तो बालक के वंशानुक्रम के ज्ञान के साथ वातावरण का भी ज्ञान आवश्यक है।
Written By :- Himanshu Sharma