संजीव जगत् में जन्तुओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हमारे परिवेश को निर्माण वनस्पति तथा पशु-पक्षियों से बना है, जो मनुष्य के जीवन को अधिक सुगम बनाते है। स्थानीय परिवेश में पाए जाने वाले पशु-पक्षी एक जीवन-चक्र के तहत आते हैं, जो मनुष्य एवं प्रकृति के बीच परस्पर सम्बन्ध निर्माण की कड़ी हैं।
हमारी पृथ्वी पर जीव जन्तुओं का एक विशाल संसार है। मानव जीवन के प्रारम्भिक दौर से आज तक जन्तुओं की उपयोगिता बनी हुई है। बच्चा किसी भी प्रकार के परिवार या समाज से सम्बन्धित हो, परन्तु वह जन्तुओं से घिरा होता है और वह जीवों के बीच रहकर ही बड़ा होता है।
प्रमुख पशु
हाथी यह जमीन पर रहने वाला विशाल आकार का स्तनपायी है। हाथी का जीवन काल 50 से 70 वर्ष होता है। एशियाई हाथी को 'भारतीय हाथी' भी कहा जाता है, जिसका वैज्ञानिक नाम- ऐलिफस मैक्सिमस इण्डिकस' है।हाथियों के झुण्ड में केवल हथनियों और 14-15 वर्ष के बच्चे ही होते हैं।
हिरण 'कार्विडाई' वर्ग का जीव है। हिरण की कई प्रजातियाँ होती हैं। यह विश्व के प्रमुख महाद्वीपों में पाया जाता है। यह स्तनधारी जीव है जो घने वनों में रहना अधिक पसन्द करता है। हिरण का शिकार भी बड़े पैमाने पर होता है।
"तेन्दुआ का वैज्ञानिक नाम 'पैंथरा पार्डस' है। एशिया तथा अफ्रीका में ● तेन्दुआ बड़ी संख्या में पाया जाता है। इसके शिकार पकड़ने की तकनीक अव्वल दर्जे की है।
भेड़िया यह कुत्ते की प्रजाति से सम्बन्धित है । यह घास के मैदानों में माँद अथवा झाड़ियों से रहता है। भेड़िया शिकार के लिए रात में निकलता है। भेड़ियाँ के 'आदमखोर' होने की प्रवृत्ति भी सामने आती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका खतरा छोटे शिशुओं पर बना रहता है।
गीदड़ यह सर्वभक्षी जीव है। इसका रंग भूरा होता है। गीदड़ झुंडों में रहते हैं तथा झाड़ियों में छिपकर रहते हैं।
लोमड़ी माँद में रहती है। यह माँद बनाने का काम नहीं करती, बल्कि अन्य पशुओं द्वारा बनाए गए माँद का प्रयोग करती है। इस जीव को धुर्तता का प्रतीक माना जाता है। विश्व में लोमड़ी की 24 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। लोमड़ी के बच्चे अंधे जन्म लेते हैं तथा बाद में उनकी आँखों में रोशनी आती हैं। ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर यह सभी जगह पाई जाती है।
नेवला भारत में नेवला सर्वत्र पाया जाता है। यह एक साहसी जीव है, किन्तु उसकी प्रकृति खूँखार होती है। साँप तथा नेवले की शत्रुता चर्चित है। नेवले के शरीर से सुगन्ध निकालती है, जिसकी समानता 'कस्तूरी' से की जाती है।
साही के शरीर में बड़े बड़े काँटे होते हैं। किसी अन्य जीव के हमलों के दौरान साही अपने काँटों को खड़ा कर लेता है। साही नदियों अथवा तालाबों के किनारे माँद बनाकर रहता है। यह पूर्णत: शाकाहारी जीव है।
प्रमुख पक्षी
कौआ यह शाखाशायी पक्षियों में 'कार्विरी' वर्ग का प्रसिद्ध पक्षी है। कौए, विश्व के सभी भागों में पाए जाते हैं। इनका रंग काला तथा भूरा होता है। कौआ सर्वपक्षी है। इसे घरेलू पक्षी के रूप में भी घरों के आस-पास देखा जा सकता है।
मुनिया यह छोटे आकार का पक्षी है जो प्राय: छोटे झुण्डों में रहती है। यह खेतों की भूमि पर गिरे बीजों को खाती है। मुनिया 5 से 10 फीट की ऊँचाई पर छोटी झाड़ियों में अपना घोंसला बनाती है।
गौरैया विश्व के अधिकांश देशों में नगरीय तथा ग्रामीण बस्तियों के निकट पाई जाती है। गौरैया की छह प्रजातियाँ हैं— हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, डेड सी स्पैरो तथा ट्री स्पैरो। इसमें 'हाउस स्पैरो' को ही आम बोलचाल में गौरैया कहा जाता है। भारत में बिहार तथा दिल्ली ने गौरैया संरक्षण को महत्त्व देते हुए इसे अपना 'राजकीय पक्षी' (State Bird) घोषित किया है।
मोर मोर का वैज्ञानिक नाम 'पावो क्रिस्टेटस' है। यह दक्षिण तथा दक्षिण पूर्ण एशिया का मूल पक्षी है। यह ज्यादातर खुले वनों में पाए जाते हैं। यह एक सुन्दर पक्षी है, जो बरसात के दिनों में अपने मोहक अंदाज के कारण आकर्षित करते हैं।
भारत तथा श्रीलंका में इसे 'राष्ट्रीय पक्षी' घोषित किया गया है। नीलकण्ठ या इण्डियन रोलर बर्ड इसका वैज्ञानिक नाम 'कोरेशियस बेन्गालेन्सिस' है। इसका मूल निवास स्थान भारत है। नीलकण्ठ को एक पवित्र पक्षी माना जाता है तथा दशहरा के दिन इसके दर्शन को शुभ माना जाता है।
चील यह लगभग दो फुट लम्बी तथा गहरे भूरे रंग की चिड़िया होती है इसकी चोंच काली और टाँगें पीली होती हैं। यह सर्वभक्षी पक्षी है तथा अपनी पैनी व मजबूत दृष्टि के लिए जानी जाती है।
गिद्ध ये शिकारी पक्षियों के अन्तर्गत आने वाले मुर्दाखोर पक्षी हैं, जो अपनी तेज दृष्टि के लिए प्रसिद्ध है।
गोडावण या ग्रेट इण्डियन बस्टर्ड उड़ने वाले पक्षियों में यह सबसे अधिक वजनी पक्षी हैं। यह शतुमुर्ग जैसा प्रतीत होता है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी है। इसके अन्य नाम सोहन चिडिया और हुकना हैं।
बाघ यह जंगल में रहने वाला माँसाहारी स्तनपायी पशु है। इसके संरक्षण के लिए भारत सरकार ने इसे भारत का राष्ट्रीय पशु घोषित किया है। इसकी दृष्टि बहुत ही तीव होती है तथा यह मनुष्य की अपेक्षा दोगुना अधिक दूर तक रात में भी देख सकता है।
गैण्डा यह स्थल पर पाया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा जन्तु है। यह शाकाहारी होता है। ये एक या दो सींग वाले जन्तु होते हैं। इसका सींग नाक के ऊपर होता है।
जिराफ यह पृथ्वी का सबसे ऊँचा एवं शाकाहारी जन्तु है। जिसकी लम्बाई 5 में मीटर तक होती है। यह मुख्यत: अफ्रीका के जंगलों में पाया जाता है। चिम्पैंजी यह सबसे होशियार जानवर है। ये समूह में रहते हैं। इनके लगभग 3 से 80 सदस्य होते हैं।
हमारे पालतु-पक्षी
पशु-पक्षियों को पालतू बनाने के पीछे आर्थिक कारण अधिक प्रबल हैं। मनुष्य पशुओं से अपनी जरूरतों की चीजें प्राप्त करता है तथा यह उनके कार्यों को आसान कर देते हैं।
प्रमुख पालतू पशु
प्रमुख पालतू पशुओं का विवरण निम्न है
कुत्ता यह एक विशिष्ट पालतू पशु है, जो घरों में मनुष्य के आस-पास रहता है। यह वफादार पशु है तथा इसे घर की रखवाली तथा सुरक्षा के लिए पाला जाता है। कुत्तों की कई प्रजातियाँ पालतू हैं, जिनमें लेब्राडोर, डॉबरमैन, बुलडॉग इत्यादि प्रमुख हैं। छोटी ऊँचाई वाले प्रजाति रॉटवेलर तथा पग अधिक लोकप्रिय हैं।
बिल्ली भी एक पालतू पशु है, जिसे लोग शौक से पालते हैं। बिल्ली में सुनने और सूंघने की प्रबल शक्ति होती है। यह कम रोशनी में भी आसानी से देख पाती है। बिल्लियाँ दुनिया में सबसे प्रसिद्ध पालतू पशु हैं। बिल्लियों का मजबूत और लचीला शरीर उसे तेज अभिक्रियाएँ करने तथा शिकार की शक्ति प्रदान करता है।
गाय एक महत्त्वपूर्ण पालतू पशु है। यह विश्व के सभी भागों में पाई जाती है। गाय से प्राप्त उत्तम किस्म के दूध का उपयोग मनुष्य द्वारा भोजन के रूप में किया जाता है। भारत में गाय की लगभग 30 नस्लें मिलती हैं। रेड सिन्धी, साहीवाल, गिर आदि भारत में पाई जाने वाली गाय की प्रसिद्ध नस्ले हैं। इन नस्लों की गायें अधिक दूध देती हैं।गाय को पालतू पशु के रूप रखने का उद्देश्य धार्मिक तथा सांस्कृतिक है। हिन्दी धर्म में 'पंचगण्य' का महत्त्व है जो गाय से प्राप्त वस्तुएँ- दूध, दही, घी, गोबर तथा गोमूत्र हैं।
भैंस भारत में भैंस पालतू पशु के रूप में आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण है। भैंस के दूध का प्रयोग भोजन में तथा भोज्य पदार्थों के निर्माण में किया जाता है भैंसों को पालतू बनाए जाने का साक्ष्य प्राचीन काल के स्रोतों से प्राप्त होता है। भैंसों का रंग काला तथा सींग प्राय: वक्राकार होते हैं।
प्रमुख पालतू पक्षी पालतू पक्षियों का विवरण निम्न है
तोता यह हरे रंग का पक्षी है, जो आकर्षक होने के कारण पालतू बनाया जाता है। तोता एक समझदार पक्षी है। तोते की चोच लाल रंग की होती है। तोते का वैज्ञानिक नाम 'सिराक्यूला केमरी है। इसका भोजन फल तथा हरे फल है।
कबूतर यह सम्पूर्ण विश्व में पाया जाने वाला पक्षी है। कबूतर मनुष्यों के सम्पर्क में रहना पसन्द करता है। अनाज, मेवे तथा दालें इसका भोजन है। यह एक पालतू पक्षी है। भारत में सफेद तथा सलेटी रंग के कबूतर बड़ी संख्या में पाए जाते हैं।
मुर्गा/मुर्गी प्रसिद्ध पालतू पक्षी हैं। मुर्गा (Cock) नर पक्षी प्रजाति है, जबकि मुर्गी (Hen) मादा पक्षी प्रजाति है। मुर्गे से माँस तथा मुर्गी से अण्डों की प्राप्ति होती है। भारत में विश्व में सर्वाधिक अण्डों का उत्पादन होता है।मध्य प्रदेश का 'कड़कनाथ मुर्गा प्रसिद्ध है, जिसे वर्ष 2018 में भौगोलिक संकेतक (GI) प्राप्त हुआ है।
बत्तख एक जल पक्षी है। यह ऐनारीडे प्रजातियों के पक्षियों में से एक है। बत्तख का निवास छोटे तालाबों तथा शुद्ध जल स्रोतों में होता है। लोग इसे अपने घरों के निकटस्थ जल स्रोतों में पालतू बनाकर रखते हैं। भारत में बत्तखों की चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं। बत्तख उजले, भूरे तथा हल्के काले रंगों की होती है।
मालवाहक पशु
बैल एक पालतू पशु है, जिसका उपयोग मालवाहक पशु के रूप में तथा कृषि में हल चलाने के लिए भी किया जाता है। बैलों को जोड़े में बैलगाड़ी के साथ लगाकर परिवहन में इनका उपयोग किया जाता है। बिहार में 'बैल' को राजकीय पशु घोषित किया गया है। इसका उद्देश्य बैलों को संरक्षण प्रदान करना है।
ऊँट इसे 'रेगिस्तान का जहाज' कहा जाता है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में परिवहन के लिए ऊँट का प्रयोग किया जाता है। यह 7 दिनों तक बिना पानी पिए रह सकता है। एक ऊँट की जीवन प्रत्याशा 40 से 50 वर्ष होती है। यह इसकी अधिकतम चाल 65 किमी/घण्टा होती है। यह लम्बी यात्रा के दौरान भी अपनी गति 40 किमी / घण्टा बनाए रखता है। परिवहन के अतिरिक्त इसका प्रयोग माँस तथा दूध की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
घोड़ा 'घोड़े' को मनुष्य का मित्र कहा जाता है। मध्यकाल तक घोड़ा ही परिवहन का साधन था। युद्धों में इस के प्रयोग का ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त है जब योद्धा इसकी पीठ पर चढ़कर दुश्मनों का मुकाबला करते थे। महाराणा प्रताप का घोड़ा 'चेतक' एक ऐतिहासिक पात्र के रूप में प्रसिद्ध है। तांगे गाड़ी में आज भी घोड़े का प्रयोग सामानों की ढुलाई के लिए किया जा रहा है।
खच्चर यह घोड़े तथा गदहा की मिश्रित प्रजाति है। पहाड़ी क्षेत्रों में परिवहन के लिए खच्चर का प्रयोग किया जाता है। खच्चर मुख्यतः उजले, काले तथा भूरे रंगों में पाया जाता है। चीन, मैक्सिको, दक्षिण अमेरिकी देशों में बड़ी संख्या में खच्चर पाए जाते हैं। दुर्गम क्षेत्रों में भोजन पहुँचाने में खच्चर का प्रयोग सराहनीय है।
हमारे आस-पास के परिवेश में जीव-जन्तु
हमारे आस-पास के परिवेश में स्थलीय तथा जलीय दोनों प्रकार के जीव-जन्तु पाए जाते हैं। ऐसे जीवों को दो भागों में विभाजित किया जाता है—
जंगली (वन्य जीव) तथा पालतू ।
जंगली जानवर-
उन जानवरों को कहते हैं, जो जंगलों में आबादी से दूर रहते हैं। कुछ पशु ऐसे भी होते हैं जो न तो पूर्णत: जंगली हैं और न ही उन्हें पूरी तरह पालतू ही बनाया जाता है। हमारे परिवेश में जंगली जानवरों की अधिकता रही है, किन्तु मानवीय हस्तक्षेप के कारण लगातार वनों के क्षेत्रफल में कमी आई है, जिसका परिणाम वन्य जीवों की विलुप्ति के रूप में सामने आया है।
पालतू जानवर -
मनुष्य कुछ जीवों को अपनी जरूरतों के लिए पालता है। ऐसे जीवों से वह दूध तथा माँस प्राप्त करता है। मनुष्य द्वारा पालतू बनाए गए जीव शाकाहारी होते हैं। इसमें गाय तथा भैंस प्रमुख हैं।कुछ जीवों को मनुष्य शौक से पालतू बनाता है। घरों में ऐसे जीवों की आवश्यकता नहीं होने पर भी फैशन के लिए उसे पालतू बनाया जाता है।
कुत्ता तथा बिल्ली इसमें प्रमुख हैं।भेड़ को पालतू पशु बनाने का कारण पूर्णतया आर्थिक है। भेड़ के शरीर से ऊन का निर्माण किया जाता है। इस पशु से माँस तथा दूध क उपलब्धता भी होती है।
परिवेश में ऐसे कई जीव-जन्तु भी होते हैं जो मनोरंजक होते हैं। कंगारू, जिराफ, बन्दर, लंगूर इत्यादि इसी श्रेणी में आते हैं।कंगारू छलांगे लगाने के लिए जाना जाता है। उसके पेट में एक खो होता है, जिसमें वह अपने बच्चों को रख कर उसकी सुरक्षा करता है।
जिराफ की गर्दन लम्बी होती है, जिससे वह ऊँचे वृक्षों के पत्तों का भक्षण भी कर लेता है।
परिवेश में रहने वाले जीव-जन्तुओं की देखभाल करना वातावरण के चक्र को व्यवस्थित करना है, इसलिए वनों का संरक्षण जरूरी है और इससे वन्य जीवों के मूल निवास बचे रह सकते हैं।
जानवरों पर प्रदूषण का प्रभाव
आज सम्पूर्ण विश्व प्रदूषण की समस्या से ग्रस्त है। प्रदूषण का प्रभाव सभी जीव-जन्तुओं पर व्यापक से पड़ता है। नदियों में कारखानों द्वारा छोड़े गए प्रदूषित जल से पानी विषाक्त हो जाता है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जलीय जीव-जन्तु; जैसे– मछलियाँ, कछुएँ आदि मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। प्रदूषित जल के कारण जलीय जीवों की प्रजनन शक्ति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
भूमि का प्राकृतिक संसाधनों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। विभिन्न प्रकार के रासायनिक प्रदूषणों तथा अन्य अपशिष्ट पदार्थों का विलय भूमि में होता है, जिसके कारण भूमि प्रदूषित हो जाती है, जिसका प्रभाव जन्तुओं पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से होता है। भूमि प्रदूषण के कारणों में प्लास्टिक, पॉलीथिन बैग व टिन आदि भी आते हैं, जिसके कारण कई जीवों; जैसे- गाय, भैंस, बकरी आदि की मृत्यु हो जाती है।
ध्वनि प्रदूषण मानव के साथ-साथ जन्तुओं को भी प्रभावित करता है। तेज आवाज से अधिकतर जानवर काफी डर जाते हैं या भड़क जाते हैं। यह उनके स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव डालता है। जंगलों में रहने वाले जन्तु की सुनने की शक्ति में कमी के कारण ये आसानी से शिकार हो जाते हैं, जो पूरे पारिस्थितकी तन्त्र को प्रभावित करता है। इसके अतिरिक्त ध्वनि प्रदूषण वन्य जीवों की संख्या में गिरावट का भी एक प्रमुख कारण है।
Written By - Himanshu Sharma
External Support :- Priyanka Sharma