व्युत्पति वि + आङ् + कृ धातु + ल्यूट प्रत्यय अर्थात बोलना, लिखना, पढ़ना। -
परिभाषा - वह शास्त्र जिसके द्वारा किसी भाषा को शुद्ध रूप से बोलना, लिखना, पढ़ना सीखा जाता है।
व्याकरण की सबसे लघूत्तम इकाई ध्वनि होती है। इसके लिखित रूप को वर्ण कहते है।
वर्ण- मुंह से निकलने वाली वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके टुकड़े नहीं किये जा सकते उसे वर्ण कहते है। जैसे-अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि ।
वर्णों की संख्या -
1. देवनागरी लिपि में -52
2. लिखने के आधार पर- 55
3. मूल रूप से- 52
4. मुख्य रूप से -44
5. संयुक्त रूप से- 48
6. संस्कृत में- 63
उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं
1. स्वर
2. व्यंजन
1. स्वर :- जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता हो और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है।
कुल स्वर- 13
मुख्य स्वर - 11 (देवनागरी लिपि)
मूल स्वर - 4
भेद - 5
स्वर के भेद
1. ह्रस्व स्वर / मूल स्वर / लघु / एकमात्रिक स्वर अ, इ, उ, ऋ
2 .दीर्घ स्वर / गुरु / द्विमात्रिक स्वर - आ. ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
3. प्लुत स्वर - ॐ
4. संयुक्त / संधि स्वर - ए, ऐ, ओ, औ
5. अयोगवाह ध्वनि - अं अः
2. व्यंजन :- जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं। अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जासकते।
. कुल व्यंजन - 37
. मुख्य व्यंजन 33
व्यंजन के भेद:
1. स्पर्श
2. अंतःस्थ
3. ऊष्म
4 उत्क्षिप्त / प्रताड़ित
5. लुंठित
6 पार्श्विक
7. संयुक्त
1. स्पर्श :- इन्हें पाँच वर्गों में रखा गया है और हर वर्ग में पाँच-पाँच व्यंजन हैं। हर वर्ग का नाम पहले वर्ग के अनुसार रखा गया है।
कवर्ग- क् ख् ग् घ् ड्
चवर्ग- च् छ् ज् झ् ञ् टवर्ग-ट् ठ् ड् ढ् ण् (इ द्)
तवर्ग- त् थ् द् ध् न्
पवर्ग-प् फ् ब् भ् म्
2. अंतःस्थ :- ये निम्नलिखित चार हैं
य् र् ल् व्
3. ऊष्म :- ये निम्नलिखित चार हैं:
श् ,ष्, स् ,ह्,
4. उत्क्षिप्त / प्रताड़ित
इ. द्र (नोट प्रश्न के विकल्प में न होने पर ट, ठ)
5. लुंठित
र (जीभ में कंपन होता है।)
6. पार्श्विकल
(जीभ के दोनों ओर से हवा बाहर निकलती है।)
7. संयुक्त - जहाँ भी दो अथवा दो से अधिक व्यंजन मिल जाते हैं वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं, किन्तु देवनागरी लिपि में संयोग के बाद रूप परिवर्तन हो जाने के कारण इन तीन को गिनाया गया है। ये दो-दो व्यंजनों से मिलकर बने हैं। जैसे क्षक्ष अक्षर, ज-ज्+ञ जान, त्रत् + नक्षत्र कुछ लोग क्ष त्र और ज् को भी हिन्दी वर्णमाला में गिनते हैं, पर ये संयुक्त व्यंजन हैं। अतः इन्हें वर्णमाला में गिनना उचित प्रतीत नहीं होता।
प्रयत्न / श्वास / समय के आधार पर वर्णों के भेद
1. अल्पप्राण
2 महाप्राण
1. अल्पप्राण - जिन वर्णों का उच्चारण करने में कम समय लगे अल्पप्राण कहलाते हैं। वर्ग का पहला, तीसरा, पांचवा वर्ण (क से म तक), य र ल व तथा सभीस्वर अल्पप्राण है।
2. महाप्राण - जिन वर्णों का उच्चारण करने में अधिक समय लगे महाप्राण कहलाते हैं। वर्ग का दूसरा व चौथा वर्ण (क से म तक) तथा श, ष, स, ह वर्ण आत है।
नोट व्यंजनों को स्वरों के बिना लिखा तो जा सकता है परंतु बोला या उच्चारण नहीं किया जा सकता।
उच्चारण स्थान के आधार पर वर्णों के भेद
कण्ठ्य क, ख, ग, घ, अ, आ, : विसर्ग, ह
तालव्य च, छ, ज, झ, इ, ई, य, श
मूर्धन्य - ट, ठ, ड, ढ, ऋ, र, ष
दन्तय त, थ, द, ध, लू, ल, स
ओष्ठ्य - प, फ, ब, भ, उ, ऊ
नासिका - ङ, ञ, ण, न, म, अनुस्वार
दन्तोष्ठ - व
कण्ठ्य तालव्य ए, ऐ -
कण्ठ्य ओष्ठ्य ओ, औ
वत्स्यज, न, र, ल, स
स्वर तंत्रिकाओं में कंपन के आधार पर वर्गों के भेद
1 घोष/ सघोष 2. अघोष
1. घोष / सघोष - जिन वर्णों का उच्चारण करने से स्वर तंत्रिकाओं में कंपन हो जाए उन्हें घोष वर्ण कहते हैं। वर्ग (क से म तक) का तीसरा, चौथा, पांचवा वर्ण,
य, र, ल, व, ह तथा सभी स्वर ।
2. अघोष वर्ण - जिन वर्णों का उच्चारण करने से स्वर तंत्रिकाओं में कंपन या गूंज नहीं होती है उन्हें अघोष वर्ण कहते हैं। वर्ग का पहला, दूसरा वर्ण व श, ष, स वर्ण आते हैं।
Written By : Himanshu Sharma
External Support : Ritik Rathor